अब ज़रा सी धूप निकली, जश्न मनाइये।
मत कल के घने कोहरे से ख़ौफ़ खाइये।।
मुस्कुरा के कहाँ चल दिये, ज़रा पास आइये,
ये बेरुख़ी हमीं से क्यूँ, ज़रा बैठ जाइये।
कल को छिड़ेगी जंग, अभी तना-तनी है,
पहले कुछ किया हो तो उसे अब भुनाइये।
बुज़ुर्गों का काम ही है, बच्चों से खेलना,
जो भूल चुके लोग वे किस्से सुनाइये।
रो-रो के सो गये बच्चे जो भूख से,
चर्चा बज़ट की हो रही उनको जगाइये।
निकलीं थी जितनी कोपलें, सब सांड़ खा गये,
अब गाय पूज-पूजकर मातम मनाइये।
जल चुकी हैं रस्सियां ऐंठन गयी नहीं,
मत तोड़िये भरम, मत हाथ लगाइये।।
-विजय
मत कल के घने कोहरे से ख़ौफ़ खाइये।।
मुस्कुरा के कहाँ चल दिये, ज़रा पास आइये,
ये बेरुख़ी हमीं से क्यूँ, ज़रा बैठ जाइये।
कल को छिड़ेगी जंग, अभी तना-तनी है,
पहले कुछ किया हो तो उसे अब भुनाइये।
बुज़ुर्गों का काम ही है, बच्चों से खेलना,
जो भूल चुके लोग वे किस्से सुनाइये।
रो-रो के सो गये बच्चे जो भूख से,
चर्चा बज़ट की हो रही उनको जगाइये।
निकलीं थी जितनी कोपलें, सब सांड़ खा गये,
अब गाय पूज-पूजकर मातम मनाइये।
जल चुकी हैं रस्सियां ऐंठन गयी नहीं,
मत तोड़िये भरम, मत हाथ लगाइये।।
-विजय
निकलीं थी जितनी कोपलें, सब सांड़ खा गये,
जवाब देंहटाएंअब गाय पूज-पूजकर मातम मनाइये।
sundar prastuti.
निकलीं थी जितनी कोपलें, सब सांड़ खा गये,
जवाब देंहटाएंअब गाय पूज-पूजकर मातम मनाइये।
...बहुत खूब! हरेक पंक्ति सटीक भाव लिये हुए..
bada jabardast vyang kiya hai kavita ke maadhyam se.bahut khoob.
जवाब देंहटाएंनिकलीं थी जितनी कोपलें, सब सांड़ खा गये,
जवाब देंहटाएंअब गाय पूज-पूजकर मातम मनाइये।
...करारा कटाक्ष बिलकुल नये तेवर में। यह तो दिल में बैठ गया शुक्ला जी अब कभी भूलेगा नहीं। ..मेरी बधाई स्वीकार करें, खास इस शेर के लिए।
रो-रो के सो गये बच्चे जो भूख से,
जवाब देंहटाएंचर्चा बज़ट की हो रही उनको जगाइये।
सटीक व्यंग्य ...
जल चुकी हैं रस्सियां ऐंठन गयी नहीं,
जवाब देंहटाएंमत तोड़िये भरम, मत हाथ लगाइये।।
रो-रो के सो गये बच्चे जो भूख से,
चर्चा बज़ट की हो रही उनको जगाइये।
bahut sundar rachana hai ... badhai . kafi saral shabdon men gahari bat.. abhar shukl ji .