भाग्य, प्रारब्ध, व्रत, त्योहार
क्यों भाई! क्या गये हार?
ज्योतिषी, नज़ूमी, पादरी, पाधा,
ये सब कर्मशील जीवन के बाधा।
ग्रह, नक्षत्र, साइत विचार,
डरे हुए मानुष का मनोविकार।
जीवन सतत प्रवाह है, साधना है,
सतत कर्म ही आराधना है।
नाम सम्मान, पैसा, समर्थन,
नाग के पहरे में गड़ा हुआ धन।
पाओगे नहीं! डस लेगा,
फ़कीर को कोई क्या देगा।
फ़कीरी अपनाओ, पा जावो निर्वाण,
नहीं तो बहुत मुश्किल से निकलेंगे प्राण।।