रविवार, 13 जनवरी 2013

षट्चक्र भेदन-

चार दलों का पुष्प है सुन्दर पीला रंग,
मूलशक्ति का स्रोत जो पृथ्वी अक्षर ‘लं’।
भंवरे सा गुंजन करे शक्ति मूलाधार,
ढाई कुण्डलि मारकर सोई सर्पाकार।।

स्वेत कुसुम छः पंखुड़ी जो जल ही के संग,
अंगुल चारि उठै बढ़ै ध्यान करै जो ‘वं’।
जैसे जैसे होत है जागृत स्वाधिष्ठान,
बन्द कान से सुनि पड़ै सुन्दर वंशीतान।।

सूर्य अग्नि का मेल है रक्तवर्ण है रंग,
दशमुख पीवै अमृत को निशि-दिन ध्यावे ‘रं’।
चक्र तृतीयक है यही मणिपुर इसका नाम,
वीणा सी झंकृत करे ज्यों ही जागृत धाम।।

वायुवेग सी गति करै ज्यों धूंए का रंग,
बारह पत्तल बैठकर ध्यान करै जो ‘यं’।
अनहद घंटा सो बजै चौथचक्र वलवान।
हृदस्थल में यह बसै साधक को यह ज्ञान।।

सोलह सुन्दर पंखुड़ी नीलाभा से युक्त,
‘हं’ ‘हं’ का तू जाप कर हो जावेगा मुक्त।
कलकल निर्झरणी बहै पंचम चक्र विशुद्ध,
जागृति जिसकी हो गयी साधक के सुर शुद्ध।।

मन का तू ही केन्द्र है ‘ऊँ’ शब्द का मूल,
शुद्ध रूप से स्वेत है दो ही दल मत भूल।
जलनिधि सा गर्जन करै शब्द निकालै ‘ऊँ’,
आज्ञा जागृत जानिए! गूंजे सारा व्योम।।

रूप रंग अक्षर रहित सब चक्रों का सार,
निर्विकल्प में यह मिलै सब चिन्तन के पार।
सहसों दल का कमल है शान्ति का आगार,
सहस्रार खुल जाय तो प्रभु से एकाकार।।
                                                      -विजय
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