गुरुवार, 15 अगस्त 2013

नंगा नाचे फाटे का?

कहते  हैं राजनीति गन्दी हो गयी अरे  ! ये साफ़ ही कब थी ?
फर्क  ये है कि पहले 
"ऊँट चरावे निहुरे निहुरे "
और  अब ......
" नंगा नाचे फाटे का ?"

पहले  लोक लाज का डर था 
बड़े बुज़ुर्ग थे - पञ्च प्रवरथा 
राजनीति में पहले भी अनीति थी 
अब भी है ..
फर्क ये है कि अब 
"जब नाचै तब घूघट का ?"
राजा  का पुत्र पहले भी राजा होता था 
अब भी होता है ..
चाहे वे इंदिरा-राजीव-राहुल हों
चाहे दामाद वाड्रा 
अखिलेश -सचिन -राबड़ी हों
चाहे कनिमोझी ,स्टालिन,अब्दुल्ला !
जब सब कुछ निरंतरता का ही पोषक है 
क्यों मचा रहे हों हल्ला ?
अगर आप सफाई कर्मी है 
तो राजनीति में कूद पड़े 
वरना झाड़िय' इससे अपना पल्ला!!
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