तन को तो बहला लूँ लेकिन
मन को मैं कैसे बहलाऊँ
बहुत छिछोरा है मन मेरा
उसको मैं कैसे समझाऊँ?
जीवन की लम्बी यात्रा में
कितनी बार फिसल कर सम्भला,
तन को मैंने साध लिया पर
मन तो क़दम-क़दम पर मचला,
जीवन के इस सांध्य गगन के
मन-तरंग किसको दिखलाऊँ?
बहुत छिछोरा है मन मेरा...
बाबा-दादा सम्बोधन में
कितना प्यार भरा है लेकिन
इसके पीछे से ध्वनि आती
ऐ बुड्ढे! तू अपना दिन गिन
गालों की झुर्री को कबतक
लगा क्रीम रगड़ूं, सहलाऊँ?
मन को मैं कैसे बहलाऊँ
बहुत छिछोरा है मन मेरा
उसको मैं कैसे समझाऊँ?
जीवन की लम्बी यात्रा में
कितनी बार फिसल कर सम्भला,
तन को मैंने साध लिया पर
मन तो क़दम-क़दम पर मचला,
जीवन के इस सांध्य गगन के
मन-तरंग किसको दिखलाऊँ?
बहुत छिछोरा है मन मेरा...
बाबा-दादा सम्बोधन में
कितना प्यार भरा है लेकिन
इसके पीछे से ध्वनि आती
ऐ बुड्ढे! तू अपना दिन गिन
गालों की झुर्री को कबतक
लगा क्रीम रगड़ूं, सहलाऊँ?
बहुत छिछोरा है मन मेरा...
सागर के तट पर बैठा पर
प्यास-तड़प से आकुल हूँ मैं,
धूप सेंकती रूप-राशि के
चितवन से व्याकुल हूँ मैं,
जल तो तृप्त करेगा तन को,
मन की तृप्ति कहाँ से पाऊँ?
सागर के तट पर बैठा पर
प्यास-तड़प से आकुल हूँ मैं,
धूप सेंकती रूप-राशि के
चितवन से व्याकुल हूँ मैं,
जल तो तृप्त करेगा तन को,
मन की तृप्ति कहाँ से पाऊँ?
बहुत छिछोरा है मन मेरा...
योग, ध्यान सब करके देखा,
पढ़ा बहुत सन्तों का लेखा,
प्रवचन-पोथी मेट न पाये
मन की व्याकुलता की रेखा,
ध्यान लगाता हूँ ईश्वर में
कहां लगे कैसे बतलाऊँ?
योग, ध्यान सब करके देखा,
पढ़ा बहुत सन्तों का लेखा,
प्रवचन-पोथी मेट न पाये
मन की व्याकुलता की रेखा,
ध्यान लगाता हूँ ईश्वर में
कहां लगे कैसे बतलाऊँ?
बहुत छिछोरा है मन मेरा...
-‘विजय’
-‘विजय’