सत्य-अहिंसा रह गयीं, बातें केवल आज।
हिंसक, झूठे, भ्रष्ट सब पहने हैं अब ताज।।
शान्ति कमेटी के प्रमुख, गुप-चुप बुनते जाल।
दो वर्गों को लड़ाकर, कैसे लूटें माल।।
राजनीति के आड़ में हो गये मालामाल।
लखपति कैसे हो गये, कल थे जो कंगाल।।
छपते हैं अखबार में, अक्सर जिनके नाम।
दिखते कितने सभ्य हैं, छपते देकर दाम।।
लेते धरम का नाम सब, मुल्ला और महन्त।
पाखण्डों को धरम कह, कहलाए सब सन्त।।
कितने मोटे हो गये, ये समाज के जोंक।
मन करता है भोंक दूं, तोंद में बर्छी-नोक।।
बापू तुमने क्यों दिया, ये अनशन का मन्त्र।
हर कोई अनशन करे, ढीला हो गया तन्त्र।।
बिन कर्त्तव्य प्रबोध के, अधिकारों का ज्ञान।
सर्वनाश ही कर रहा, यह विष-वेलि समान।।
-विजय
हिंसक, झूठे, भ्रष्ट सब पहने हैं अब ताज।।
शान्ति कमेटी के प्रमुख, गुप-चुप बुनते जाल।
दो वर्गों को लड़ाकर, कैसे लूटें माल।।
राजनीति के आड़ में हो गये मालामाल।
लखपति कैसे हो गये, कल थे जो कंगाल।।
छपते हैं अखबार में, अक्सर जिनके नाम।
दिखते कितने सभ्य हैं, छपते देकर दाम।।
लेते धरम का नाम सब, मुल्ला और महन्त।
पाखण्डों को धरम कह, कहलाए सब सन्त।।
कितने मोटे हो गये, ये समाज के जोंक।
मन करता है भोंक दूं, तोंद में बर्छी-नोक।।
बापू तुमने क्यों दिया, ये अनशन का मन्त्र।
हर कोई अनशन करे, ढीला हो गया तन्त्र।।
बिन कर्त्तव्य प्रबोध के, अधिकारों का ज्ञान।
सर्वनाश ही कर रहा, यह विष-वेलि समान।।
-विजय