शनिवार, 14 जनवरी 2012

आज के दोहे-

सत्य-अहिंसा रह गयीं, बातें केवल आज।
हिंसक, झूठे, भ्रष्ट सब पहने हैं अब ताज।।

शान्ति कमेटी के प्रमुख, गुप-चुप बुनते जाल।
दो वर्गों को लड़ाकर, कैसे लूटें माल।।

राजनीति के आड़ में हो गये मालामाल।
लखपति कैसे हो गये, कल थे जो कंगाल।।

छपते हैं अखबार में, अक्सर जिनके नाम।
दिखते कितने सभ्य हैं, छपते देकर दाम।।

लेते धरम का नाम सब, मुल्ला और महन्त।
पाखण्डों को धरम कह, कहलाए सब सन्त।।

कितने मोटे हो गये, ये समाज के जोंक।
मन करता है भोंक दूं, तोंद में बर्छी-नोक।।

बापू तुमने क्यों दिया, ये अनशन का मन्त्र।
हर कोई अनशन करे, ढीला हो गया तन्त्र।।

बिन कर्त्तव्य प्रबोध के, अधिकारों का ज्ञान।
सर्वनाश ही कर रहा, यह विष-वेलि समान।।
                                                                              -विजय

14 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक और प्रासंगिक दोहे ,अच्छा लिखा है आपने ..

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  2. बहुत सुन्दर दोहे ..आज के परिवेश में खरे उतरते हुए

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  3. बहुत सुंदर और प्रासंगिक दोहे. आभार विजय जी इन सुंदर दोहों से रूबरू होने का अवसर देने के लिये.

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  4. कितने मोटे हो गये, ये समाज के जोंक।
    मन करता है भोंक दूं, तोंद में बर्छी-नोक।।

    बापू तुमने क्यों दिया, ये अनशन का मन्त्र।
    हर कोई अनशन करे, ढीला हो गया तन्त्र।।
    bahut hi sundar dohe sath hi vartman pridrishy me bilkul sateek hain badhai shukl ji .

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  5. समस्त आभार व्यक्त करने वालो को मेरा आभार

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  6. SHUKL JI APKI RACHANAYEN BEHAD PRABHAVSHALI LAGATI HAIN ......AGALI RACHANA KI PRATEEKSHA ME HOON ....AUR HAN MERE NAYE POST PR APKA AMANTRAN BHI HAI .....KHAS KR MARGDARSHAN HETU.

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  7. लेते धरम का नाम सब, मुल्ला और महन्त।
    पाखण्डों को धरम कह, कहलाए सब सन्त।।
    आपने हमारे ब्लॉग पर कहा ... आह~ कहां गए वो लोग!!
    अब मेरी बारी है, आह! कहां गए वे संत!!

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  8. सामयिक परिवेश को रूपायित करते आज के दोहे .सार्थक सौदेश्य व्यंग्य विनोद और साहित्यिक सुगंध स्वाद लिए .बधाई .

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  9. राजनीति के आड़ में हो गये मालामाल।
    लखपति कैसे हो गये, कल थे जो कंगाल।। बहुत खूब बेजोड़ व्यंग्य कविता

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  10. लाजवाब! गणतंत्र दिवस की बधाई!

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