गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

समाधान-

जब अन्तर ही कामनाओं का त्याग कर दे
तभी मोक्ष है।
सर मुड़ाने या जटा बढ़ाने से क्या,
पीताम्बर पहनो या श्वेताम्बर
ये तो बाहरी आवरण हैं।
अभ्यन्तर ही वासनाओं से
विमुख न हुआ तो जीवन
अपरिवर्तित ही रहा।

गृहस्थ हो या सन्यासी
परमपिता से जुड़ने का
समान अवसर सभी को है
और मोक्ष तो उसको भी
पाने की वासना का त्याग है।
कोई इन्द्रिय निग्रह, कोई इन्द्रिय समाधान
इसका समाधान मानता है
पर
मैं इन्द्रिय उदासी ही
समाधान समझता हूँ
                                                                -विजय

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर आध्यात्मिक प्रस्तुति है आपकी.
    अनुपम जीवन दर्शन दर्शाती.
    ज्ञानपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
    हनुमान लीला पर अपने अनुभव और सुवचन
    प्रस्तुत कीजियेगा.

    जवाब देंहटाएं

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