आया फागुन आया बसंत
सूखे ठिठुरे थे जाड़े भर
वे पादप भी है बौरमंत
अनगिन पुष्पों के सौरभ से
गर्भित होकर आया बसंत |
उज्जवल बालों पिचके गालों
में भी रस भर देता बसंत
कोयल की टीस भरी बोली
पी पी पुकारती कहाँ कंत ?
आया फागुन आया बसंत |
ए कामदेव के पुष्प बाण
कोमल किसलय से सजे वृक्छ
ए मंद पवन की सुखद छुवन
ए महक-चहक़ से भरे बाग़
बच के रहना सब साधु -संत
आया फागुन आया बसंत |||