मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

आया फागुन आया बसंत

                     
                    
आया फागुन आया बसंत 
सूखे ठिठुरे थे जाड़े भर 
वे पादप भी है बौरमंत 
अनगिन पुष्पों के सौरभ से 
गर्भित होकर आया बसंत  |

उज्जवल बालों पिचके गालों 
में भी रस भर देता बसंत 
कोयल की टीस भरी बोली 
पी पी पुकारती कहाँ कंत ?
आया फागुन आया बसंत  |

ए कामदेव के पुष्प बाण 
कोमल किसलय से सजे वृक्छ
ए मंद पवन की सुखद छुवन 
ए महक-चहक़ से भरे बाग़ 
बच के रहना सब साधु -संत 
आया फागुन आया बसंत |||
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