रविवार, 30 मार्च 2014

माँ

यादों में तू है बसी सुन्दर और समर्थ।
प्रतिक्षण मेरे पास है क्यों रोऊँ मै व्यर्थ।।

               अनसुलझे जो प्रश्न हैं मैं सुलझाऊँ मौन,
               सूक्ष्म रूप में प्रेरणा देता मुझको कौन?

योगी थी तुम कर्म की अब कर्मों से मुक्त।
मै तेरा ही अंश हूँ रहू कर्म संयुक्त।।

               जो आया सो जायगा सुना सैकड़ों बार ।
               घूम घामकर लौट आ दिल की यही पुकार।।

किसको मै अम्मा कहूँ किससे दिल दूँ खोल ।
बहुत खले तेरी कमी प्रेम सिक्त वह बोल।।

                 यदि सच्चे हैं शास्त्र तो तू है शुद्ध स्वरूप,
                 जब बंधन से मुक्त तू क्यों न धरे निज रूप?

‘गया कभी आता नहीं’ इत समझैं सब कोय ।
पर दिल का मैं क्या करूँ प्रतिक्षण व्याकुल होय ।।

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

आओ आज हम होली मनाये

आओ आज हम होली मनाये

जलाए वैमनस्य को अतिचार को ,
आतंक को ,ईर्षा को ,कुविचार को ,
कायरता को ,आलस को .
डाले एक दूजे पर प्रेम का रंग
करे गाल लाल ,मल के लज्जा का गुलाल
काटे जात पात का जाल
बाटे,उल्लास ,प्यार ,अपनापन ,
सौहार्द ,एक दूजे का दर्द
बने सबके हमदर्द

दहन करे  ! कुटिलता ,मलिनता ,
झूठ फरेब ,धोखाधड़ी
ए है आत्म निरीक्षण की घडी  !

कर दे स्वाहा कुरीतियों का कबाड़
तोड़ दे घृणा के विषदंत
केवल वर्जनाओं का न होम करे
लेकर होली की आड़
आहुति दे अपनी भेद दृष्टि का
फिर देखो कितने आनंद में तिरता है प्राण  !!!!

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

बुद्धि बड़ी की बड़ा है बल? : बाल कविता

बुद्धि बड़ी की बड़ा है बल
प्रश्न नहीं है बहुत सरल
असुर बहुत बलशाली थे
पर बुद्धि से खाली थे
गया हार उनका छल-बल
देव बुद्धि से हुए सबल
हनुमान सुरसा के मुख से
छोटे होकर गये निकल

लक्छ्मन जी को तीर लगा
मूर्छित हो गए राम विकल
हनुमान को अतुलित बल
औषधि लाने गए निकल
समझ न पाए औषधि कौन
बुद्धि यहाँ पर हो गयी मौन
उठा लिया पर्वत को तौल
यहाँ काम आया था बल
अवसर ही बतलाता है
कौन काम कब आता है ||
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