उठो जागो नौजवानों!
बदल दो इस व्यवस्था को,
क्या तुम्हारा खून ठंढा हो गया है?
या तुम्हारे रीढ़ की हड्डी नहीं है?
है भयावह दुर्दशा और दुर्व्यवस्था,
हर तरफ़ अन्याय की संगत अवस्था,
हर काम का है एक फंडा घूस,
ले रहे हैं देश को सब चूस,
हर सुरक्षा में बड़ा सा छेद,
दे रहे हैं दुश्मनों को भेद,
ध्वस्त है कैसा समूचा तन्त्र,
अब सुधरने का न कोई मन्त्र।
और तुम हो मस्त
गुटके में, धुंआ में!
बन्द कानों में महज़ संगीत लहरी!
विश्व का क्रन्दन सुनेगा कौन?
क्या बनेगे वृद्ध अब इस देश के प्रहरी?
तुम रात भर रंगरेलियों में मस्त!
दिन को दस बजे सोकर उठोगे पस्त!
उठो! जागो! देश के तुम लाल!
जहां देखो बेईमानी, घूसखोरी,
अनाचार, कदाचार
गर्जना करके बनो तुम काल!
-विजय
बदल दो इस व्यवस्था को,
क्या तुम्हारा खून ठंढा हो गया है?
या तुम्हारे रीढ़ की हड्डी नहीं है?
है भयावह दुर्दशा और दुर्व्यवस्था,
हर तरफ़ अन्याय की संगत अवस्था,
हर काम का है एक फंडा घूस,
ले रहे हैं देश को सब चूस,
हर सुरक्षा में बड़ा सा छेद,
दे रहे हैं दुश्मनों को भेद,
ध्वस्त है कैसा समूचा तन्त्र,
अब सुधरने का न कोई मन्त्र।
और तुम हो मस्त
गुटके में, धुंआ में!
बन्द कानों में महज़ संगीत लहरी!
विश्व का क्रन्दन सुनेगा कौन?
क्या बनेगे वृद्ध अब इस देश के प्रहरी?
तुम रात भर रंगरेलियों में मस्त!
दिन को दस बजे सोकर उठोगे पस्त!
उठो! जागो! देश के तुम लाल!
जहां देखो बेईमानी, घूसखोरी,
अनाचार, कदाचार
गर्जना करके बनो तुम काल!
-विजय