तमाम उम्र मैं ईमान ही ईमान गाता रहा
क्या ख़ौफ़े ख़ुदा से अपने को भरमाता रहा?
भूख से जब अंतड़ियां कुलबुलाने लगीं,
अंगूठा चूस के बच्चा दिल बहलाता रहा।
ग़ुसलख़ाने में जब ठंड से हड्डियां कांपी
ज़ोर-ज़ोर से चालीसा चिल्लाता रहा।
जब भी शिद्दत से तुम्हारी याद आई
मैं टहलता रहा और गुनगुनाता रहा।
बुज़ुर्गों ने बहुत कुछ किया समाज के लिए
और मैं उसी का सूद-व्याज़ खाता रहा।
दिल में तो दर्द का सुनामी था,
फिर भी हंसता-हंसाता रहा।
ख़्वाहिशें तो मेरी फ़हश हैं यारों!
शरीफ़ज़ादा हूँ दिल तड़पाता रहा।
मुखौटों पर मुखौटे मैंने बदले हैं
और मुखौटों पे ही इठलाता रहा।
-विजय
क्या ख़ौफ़े ख़ुदा से अपने को भरमाता रहा?
भूख से जब अंतड़ियां कुलबुलाने लगीं,
अंगूठा चूस के बच्चा दिल बहलाता रहा।
ग़ुसलख़ाने में जब ठंड से हड्डियां कांपी
ज़ोर-ज़ोर से चालीसा चिल्लाता रहा।
जब भी शिद्दत से तुम्हारी याद आई
मैं टहलता रहा और गुनगुनाता रहा।
बुज़ुर्गों ने बहुत कुछ किया समाज के लिए
और मैं उसी का सूद-व्याज़ खाता रहा।
दिल में तो दर्द का सुनामी था,
फिर भी हंसता-हंसाता रहा।
ख़्वाहिशें तो मेरी फ़हश हैं यारों!
शरीफ़ज़ादा हूँ दिल तड़पाता रहा।
मुखौटों पर मुखौटे मैंने बदले हैं
और मुखौटों पे ही इठलाता रहा।
-विजय
बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई ।।
जीवन के कुछ ऐसे सत्यों को उजागर करती है ये रचना जो शायद हमारी आदतों में जुड़ गये हैं ....शायद इनसे बच पाना सम्भव नहीं है
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति, सर
आभार