पर्दगी-बेपर्दगी सब है हमारा ही फ़ितूर,
छोटे-छोटे बच्चों में ये बात क्यों आती नहीं?
हवा-पानी-धूप तो सबको बराबर मिल रहे,
प्रकृति मेरे-तेरे का तो भाव ही लाती नहीं।
सर्द मौसिम में खिली जो धूप तो सब खिल उठे,
भूलकर कि शाम गरमाने को भी पाती नहीं।
आज कलरव पक्षियों का तार सप्तक छू रहा,
उत्सवों में मन्द स्वर में ये कभी गाती नहीं।
प्यास मन की न बुझी है न बुझेगी ये कभी,
जाँ चली जाती है लेकिन प्यास तो जाती नहीं।
है सियासत गर्म इनको कह रहा कोई ग़लत,
सूर को भी सूर कहते मूर्ख, जज़्बाती नहीं।
जाति-मज़हब नाम पर हम आज जो हैं कर रहे,
घर जलाते ख़ुद का ख़ुद, कोई फ़सादाती नहीं।।
-विजय
छोटे-छोटे बच्चों में ये बात क्यों आती नहीं?
हवा-पानी-धूप तो सबको बराबर मिल रहे,
प्रकृति मेरे-तेरे का तो भाव ही लाती नहीं।
सर्द मौसिम में खिली जो धूप तो सब खिल उठे,
भूलकर कि शाम गरमाने को भी पाती नहीं।
आज कलरव पक्षियों का तार सप्तक छू रहा,
उत्सवों में मन्द स्वर में ये कभी गाती नहीं।
प्यास मन की न बुझी है न बुझेगी ये कभी,
जाँ चली जाती है लेकिन प्यास तो जाती नहीं।
है सियासत गर्म इनको कह रहा कोई ग़लत,
सूर को भी सूर कहते मूर्ख, जज़्बाती नहीं।
जाति-मज़हब नाम पर हम आज जो हैं कर रहे,
घर जलाते ख़ुद का ख़ुद, कोई फ़सादाती नहीं।।
-विजय
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 16-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई डाक्टर साहब ।।
वाह.............
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
प्यास मन की न बुझी है न बुझेगी ये कभी,
जाँ चली जाती है लेकिन प्यास तो जाती नहीं।
बहुत खूब.
अनु
प्यास मन की न बुझी है न बुझेगी ये कभी,
जवाब देंहटाएंजाँ चली जाती है लेकिन प्यास तो जाती नहीं।
वाह !!!! बहुत खूब सुंदर रचना...विजय कुमार जी,..
आपके पोस्ट में आना अच्छा लगा,आपका समर्थक बन गया हूँ
आप भी समर्थक बने,मुझे खुशी होगी,..
मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है,...
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MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....