तमको मुझसे मुहब्बत है मैंने माना!
बात रक़ीब के ज़ुबानी है।
मैंने लम्हा-लम्हा तुमको जिया है
फिर ये क्यों बदग़ुमानी है।
सबके लिए शीरी मेरे लिए तल्ख़
इसके क्या मानी है?
जनम-जनम तक निभाने का वादा
बात ये पुरानी है।
हम रक़ीब से शादी रचाएंगे
अब ये नई कहानी है।
सुना है साक़ी ने मुझको पूछा था
चाल में फिर रवानी है।
शीशा भी तड़प के चटक जाए
वाह क्या जवानी है।
-विजय
बात रक़ीब के ज़ुबानी है।
मैंने लम्हा-लम्हा तुमको जिया है
फिर ये क्यों बदग़ुमानी है।
सबके लिए शीरी मेरे लिए तल्ख़
इसके क्या मानी है?
जनम-जनम तक निभाने का वादा
बात ये पुरानी है।
हम रक़ीब से शादी रचाएंगे
अब ये नई कहानी है।
सुना है साक़ी ने मुझको पूछा था
चाल में फिर रवानी है।
शीशा भी तड़प के चटक जाए
वाह क्या जवानी है।
-विजय
चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन जबरजस्त रचना लिखी है,..विजय जी....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
sir aaj to aapke ahurangi sahitya lekhan ke ek aaur rang se rubaru haon ke mauka mil..kabhi ekdam sahityik hindi...kabhi urdu ka bejod istemaal...sadar pranam ke sath mere blog par kabhi ashish dene aayiyega
जवाब देंहटाएंsahii maaine men ,uchcha koti kii rachana,saatar badhaaii.
जवाब देंहटाएंमैंने लम्हा-लम्हा तुमको जिया है
जवाब देंहटाएंफिर ये क्यों बदग़ुमानी है।...............बढ़िया!!