आइए! मुझसे मुखौटे ले जाइए
मेरे पास हर तरह के मुखौटे हैं,
आइए! क्या चाहिए-
नाम? दाम? एशोआराम?
आइए भाई साहब! बहन जी!
मुखौटे के बिना कुछ मिलता नहीं
ये देखिए-
यह मुखौटा समाज सेवक का है
आजकल इसका भाव चढ़ा है,
मल्टी लेयर्ड है, चाहे जो काम ले लो,
पर्त-दर-पर्त मढ़ा है।
जब चाहे प्रकृति के संरक्षक बन जाव
वन्य प्राणी बड़े सस्ते और सुलभ हैं,
उनकी ख़ूब बातें करो
और उन्हीं को मारो, खाव।
जब जिसमें सरकारी अनुदान मिले
वही मुखौटा पहनो,
कागज़ों पर वृक्षारोपण, जल संरक्षण,
अन्धत्व निवारण, साक्षरता
सब होता है तुम भी कर लो।
इसमें दाम भी है, नाम भी है
ग्रीन मैन ऑव इण्डिया
का अवार्ड आने वाला है
खावो, खिलावो और माला पहनो।
चलिए छोड़िए! नहीं पसन्द है?
तो लीजिए दूसरा
विद्वान-दार्शनिक बन कर
शोभित करें यह धरा।
इसमें भी अनन्त सम्भावनाएं हैं
आलोचक, प्रशंसक, कवि, लेखक
विचारक कुछ भी बन सकते हैं,
सारा मैदान है खाली पड़ा
दो चार शेर, कविताएं
अंग्रेज विद्वानों के उद्धरण
हो सके तो एकाध श्लोक
विदेशी दार्शनिकों के विचार
बोलिए! हो जाएगा पूरा प्रचार।
डी.एम., सी.डी.ओ., बी.एस.ए.,
डी.एफ.ओ. से मिलते रहिए
आँख पर चढ़ गये
तो समझो बढ़ गये।
शहर में कुछ भी हो
पहुँचिए और बोलिए!
ज्ञान का पिटारा खोलिए!
दाम कम है पर सम्मान को
कम न तोलिए!
अफ़सर मुस्कुराकर मिलेंगे
तो अनन्त द्वार खुलेंगे
आपका नाम राष्ट्रपति पदक के लिए भेज दें
तो सारे समाचार-पत्र आपको फुल पेज़ दें।।
लगता है आप थोड़े में मानने वाले नहीं हैं
तो फिर यह नेता वाला मुखौटा लीजिए!
सम्पूर्ण सक्षम बन कर समाज का खून पीजिए,
इसके बारे में आपको क्या बतलाना
अग़र आप पूरे घाघ ना होते
तो अब तक किसी और मुखौटे पर
फिसल गये होते,
बस एक ख़्तरा है आगाह किये देता हूँ
एक बार पहनोगे तो उतरेगा नहीं
चाहे जितनी बार धोये जावो रहेगा वहीं,
भूल जावोगे अपनी शक्ल हमेशा के लिए
समझोगे अपने को सूर्य चाहे रहो बुझे हुए दीये।।
-विजय