शनिवार, 27 अगस्त 2011

मंथन


भीड़ के एकान्त में मंथन चले जब
दीप के अवसान पर ज्वाला बने लौ
ध्यानस्थ निश्चलता बने जब
आधार झंझावात का
सुर-असुर के द्वन्द्व में
मुश्क़िल बताना कौन क्या है?


खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
उस ध्येय को, उद्देश्य को,
इस जन्म के निहितार्थ को
कर्म के अनगिनत श्रृंगों पर
कौन सी मेरी शिला है!


कौन सा संधान मेरी प्रतीक्षा में
मूक-निश्चल इंगितों से है बुलाता
पर नहीं इस कलम की वाचालता
भी ध्यान की गहराइयों में
जब निर्वाक् हो जाये तभी
स्पष्ट होगा व्योम का संदेश।
इस जन्म का वह ध्येय, वह उद्देश्य।
                                                            -विजय

9 टिप्‍पणियां:

  1. कौन सा संधान मेरी प्रतीक्षा में
    मूक-निश्चल इंगितों से है बुलाता
    पर नहीं इस कलम की वाचालता
    भी ध्यान की गहराइयों में
    जब निर्वाक् हो जाये तभी
    स्पष्ट होगा व्योम का संदेश।
    इस जन्म का वह ध्येय, वह उद्देश्य।... gahan bhawon ka adbhut sangam

    जवाब देंहटाएं
  2. खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
    उस ध्येय को, उद्देश्य को,
    इस जन्म के निहितार्थ को
    कर्म के अनगिनत श्रृंगों पर
    कौन सी मेरी शिला है!

    एक उत्तम कविता।
    दार्शनिकता युक्त भाव।

    जवाब देंहटाएं
  3. खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
    उस ध्येय को, उद्देश्य को,
    इस जन्म के निहितार्थ को.....

    गहन भावाभिव्यक्ति...
    सादर...

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  4. गहन मंथन |

    उत्तम कविता ||

    बहुत बहुत बधाई ||

    जवाब देंहटाएं

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