भीड़ के एकान्त में मंथन चले जब
दीप के अवसान पर ज्वाला बने लौ
ध्यानस्थ निश्चलता बने जब
आधार झंझावात का
सुर-असुर के द्वन्द्व में
मुश्क़िल बताना कौन क्या है?
खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
उस ध्येय को, उद्देश्य को,
इस जन्म के निहितार्थ को
कर्म के अनगिनत श्रृंगों पर
कौन सी मेरी शिला है!
कौन सा संधान मेरी प्रतीक्षा में
मूक-निश्चल इंगितों से है बुलाता
पर नहीं इस कलम की वाचालता
भी ध्यान की गहराइयों में
जब निर्वाक् हो जाये तभी
स्पष्ट होगा व्योम का संदेश।
इस जन्म का वह ध्येय, वह उद्देश्य।
-विजय
गहन मंथन ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbehtreen gambheer bhav ko darshaati uttam kavita.
जवाब देंहटाएंकौन सा संधान मेरी प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंमूक-निश्चल इंगितों से है बुलाता
पर नहीं इस कलम की वाचालता
भी ध्यान की गहराइयों में
जब निर्वाक् हो जाये तभी
स्पष्ट होगा व्योम का संदेश।
इस जन्म का वह ध्येय, वह उद्देश्य।... gahan bhawon ka adbhut sangam
खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
जवाब देंहटाएंउस ध्येय को, उद्देश्य को,
इस जन्म के निहितार्थ को
कर्म के अनगिनत श्रृंगों पर
कौन सी मेरी शिला है!
एक उत्तम कविता।
दार्शनिकता युक्त भाव।
खोजता मैं मौन की गहराइयों में,
जवाब देंहटाएंउस ध्येय को, उद्देश्य को,
इस जन्म के निहितार्थ को.....
गहन भावाभिव्यक्ति...
सादर...
गहन मंथन |
जवाब देंहटाएंउत्तम कविता ||
बहुत बहुत बधाई ||
behtreen... gahan chintan karati rachna...
जवाब देंहटाएंगहरा विश्लेष्ण ...
जवाब देंहटाएंसमस्त ब्लोगेर बंधू बान्धवी को धन्यवाद
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