शनिवार, 6 अगस्त 2011

आकाश दर्शन (बाल जिज्ञासुओं के लिए)

आसमान में अरबों तारे,
सब के सब हैं बहुत बड़े।
अपनी पृथ्वी अपने सूरज,
से भी ये हैं बहुत बड़े।।

महाकाश के महाशून्य में,
सब के सब हैं भटक रहे।
समझ नहीं आता कैसे? किस?
आकर्षण से लटक रहे।।

स्थिर नहीं एक भी इनमें,
सब के सब हैं घूम रहे।
कोई मात्र गैस के गोले,
किसी-किसी में भूमि रहे।।

कोई बहुत गरम है कोई
अतिशीतल बे-रोशन है।
कहीं वायुमण्डल है सुखकर,
कहीं न कोई मौसम है।।

भ्रमण-घूर्णन और झूमना,
तरह-तरह के गति वाले।
छोटे उल्कापिण्ड न पूँछो,
हैं ये बुरी नियति वाले।।

जब भी जी में आया इनके
बड़े वेग से बरस उठे।
ये ताण्डव करते जब, धरती
सूर्य-किरण को तरस उठे।।

धूमकेतु जो पुच्छल तारे,
भ्रमणशील हैं बहुत अधिक।
सौर्य-क्षेत्र में आते हैं ये,
पर हैं ये बाहरी पथिक।।

झलमिल करती बहे नदी सी,
वह आकाश की गंगा है।
नीले-लाल गुच्छ में तारे,
दृश्य बहुत सतरंगा है।।

द्वादश-राशिक बात छोड़िए,
सब के सब बहुरुपिए हैं।
बिच्छू, मछली, शेर आदि के,
कितनी शक्ल लिए ये हैं।।

इस महान् संरचना का,
प्रारम्भ हुआ कब होगा अन्त।
प्रश्न जटिल है पर वैज्ञानिक-
शोध चले जीवन पर्यन्त।।

इस रहस्यमय गुत्थी का कुछ
छोर-किनारा बूझ रहे?
उस महान् रचनाकर्ता के
इस रहस्य से जूझ रहे।।

                                                  -‘विजय’

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी प्रस्तुति ..कविता से काफी ज्ञान मिल जायेगा

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  2. इस महान् संरचना का,
    प्रारम्भ हुआ कब होगा अन्त।
    प्रश्न जटिल है पर वैज्ञानिक-
    शोध चले जीवन पर्यन्त।।
    bauddhik vicharon ka sanyojan

    जवाब देंहटाएं
  3. bachcho ki hi nahi humari jigyasa ke anuroop hai yeh kavita to.bahut achchi lagi padhkar.bahut rochak.

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  4. graho nakshatro ko bahut sundar varnit kaiya hai aapne......abhar

    जवाब देंहटाएं
  5. ज्ञान वर्धक कविता...
    सादर आभार.

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  6. bahut achche bhav se likhi gyaanverdhak gahan prastuti badhaai aapko.

    "ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  7. सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. behad gyan vardhak rachna..sir aap ki kavitaon mein itne dino mein kaphi bibidhta dekhne ko mili..kavi ek rang anek...badhayee aaur sadar pranam ke sath..

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  9. आप सभी विज्ञ jano को mera प्रणाम ! मित्रो मै विज्ञानं का व्यक्ति हूँ कविता के शास्त्रीय रूप से aparichit हूँ .फिर भी आपको मेरी ये angadh कृतिया पसंद आ रही है ये aapka badappan है.

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