गर्मी भर पढ़ता रहे, ‘चरैवेति’ का पाठ।
पर्वत, झरना, ग्लेशियर, उसके ही हैं ठाट।।
पिट्ठू में सामान रख, पहने ऊँचा बूट।
नदियों सा अल्हण बहे, पीवे निर्झर घूंट।।
छायांकन में है मज़ा, सुन्दरता चहुँ ओर।
तितली, पक्षी, फूल, तरु, हिम-शिखरों पर भोर।।
देवदारु, अखरोट के, जंगल में आवास।
भोजपत्र औ धूप का चारों ओर सुबास।।
वर्फ गला औ पुष्प का, बिछता है कालीन।
इस नैसर्गिक दृष्य में, मन होवे लवलीन।।
झरनों के संगीत में, संगत देय विहंग।
सम्मोहन है प्रकृति में, हर छिन बदले रंग।।
जो चाहो निर्बन्धता, जीवन बिना तनाव।
यायावर बन प्रकृति से, एकरूप ह्वयि जाव।।
-‘विजय’
पर्वत, झरना, ग्लेशियर, उसके ही हैं ठाट।।
पिट्ठू में सामान रख, पहने ऊँचा बूट।
नदियों सा अल्हण बहे, पीवे निर्झर घूंट।।
छायांकन में है मज़ा, सुन्दरता चहुँ ओर।
तितली, पक्षी, फूल, तरु, हिम-शिखरों पर भोर।।
देवदारु, अखरोट के, जंगल में आवास।
भोजपत्र औ धूप का चारों ओर सुबास।।
वर्फ गला औ पुष्प का, बिछता है कालीन।
इस नैसर्गिक दृष्य में, मन होवे लवलीन।।
झरनों के संगीत में, संगत देय विहंग।
सम्मोहन है प्रकृति में, हर छिन बदले रंग।।
जो चाहो निर्बन्धता, जीवन बिना तनाव।
यायावर बन प्रकृति से, एकरूप ह्वयि जाव।।
-‘विजय’
वाह प्रकृति का सुन्दर निरुपण्।
जवाब देंहटाएंझरनों के संगीत में, संगत देय विहंग।
जवाब देंहटाएंसम्मोहन है प्रकृति में, हर छिन बदले रंग।।
शब्दों की मृदंग छेड अदभुत तान पर मधुर संगीत प्रस्तुत किया है आपने.
आपकी सदा 'जय' हो,विजय जी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
पूरी प्रकृति का दृश्य दिखा दिया ..बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंझरनों के संगीत में, संगत देय विहंग।
जवाब देंहटाएंसम्मोहन है प्रकृति में, हर छिन बदले रंग।।
प्रकृति से रिश्ता पुख्ता करती रचना
"बड़े प्यारे भावों में, प्रकृति हुइ अभिव्यक्त.
जवाब देंहटाएंवर्णन पठ ही हो गया, रोम रोम अनुरक्त "
सादर....
जो चाहो निर्बन्धता, जीवन बिना तनाव।
जवाब देंहटाएंयायावर बन प्रकृति से, एकरूप ह्वयि जाव।।
बहुत सुन्दर