हर साल मनाते हैं इसे धूम-धाम से,
क्या देश बढ़ सकेगा महज ध्वज-प्रणाम से?
लबरेज़ जो नहीं है हृदय देश-प्रेम से,
क्या ख़ाक मिलेगा तुझे झूठे सलाम से!
क्या कर रहे हैं आप आज़ादी के लिए अब?
कब तक खिंचेगी नाव बुज़ुर्गों के नाम से!
इस देश के विकास का इक ही है रास्ता,
हर एक शख़्स प्यार करे अपने काम से।
इक नये विहान की उम्मीद में सब हैं
ये नौनिहाल आज के कल के कलाम से।
इंसानियत से बड़ा है देश भी नहीं,
बांटे जो सबका दर्द वह करीम-राम से।।
क्या देश बढ़ सकेगा महज ध्वज-प्रणाम से?
लबरेज़ जो नहीं है हृदय देश-प्रेम से,
क्या ख़ाक मिलेगा तुझे झूठे सलाम से!
क्या कर रहे हैं आप आज़ादी के लिए अब?
कब तक खिंचेगी नाव बुज़ुर्गों के नाम से!
इस देश के विकास का इक ही है रास्ता,
हर एक शख़्स प्यार करे अपने काम से।
इक नये विहान की उम्मीद में सब हैं
ये नौनिहाल आज के कल के कलाम से।
इंसानियत से बड़ा है देश भी नहीं,
बांटे जो सबका दर्द वह करीम-राम से।।
सुंदर और प्रेरक गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल
जवाब देंहटाएंराष्ट्र पर्व पर सादर शुभकानाएं...
खूबसूरत गजल. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.