बौराई अमराई में कभी
कोयल की कूक जब सुनता हूँ,
माटी की गंध लौट आती है,
लड़कपन-उमंग लौट आती है।
वैसे तो बदल गया मन, चित
फिर भी वैसी ही है यह प्रकृति,
वर्षा की रातों में जुगुनू,
चमक-चमक जाते हैं लुक-छिप,
अंगूर और सेब तो अच्छे हैं,
पर यार! मन से हम बच्चे हैं,
एक-एक बेर की चिरौरी याद आती है,
फालसा और फरफररेवरी याद आती है।
माटी की गन्ध लौट आती है...
वैसे तो व्यंजन बहुत हैं,
मन को मनोरंजन बहुत हैं;
पर यार हम अपने को क्या कहें
भूजा और भेली का सोंधापन
यादों के सारे दरीचे खोल जाती है।
माटी की गन्ध लौट आती है...
वैसे तो अब मैं पढ़ाता हूँ,
पढ़े हुए पाठ दोहराता हूँ,
पर मुझको जिन्होंने था पढ़ाया,
उनकी छपकी की मार याद आती है,
बाबू साहब की दहाड़ याद आती है,
मौली साहब की पुकार याद आती है।
माटी की गन्ध लौट आती है।
लड़कपन-उमंग लौट आती है।।
कोयल की कूक जब सुनता हूँ,
माटी की गंध लौट आती है,
लड़कपन-उमंग लौट आती है।
वैसे तो बदल गया मन, चित
फिर भी वैसी ही है यह प्रकृति,
वर्षा की रातों में जुगुनू,
चमक-चमक जाते हैं लुक-छिप,
अंगूर और सेब तो अच्छे हैं,
पर यार! मन से हम बच्चे हैं,
एक-एक बेर की चिरौरी याद आती है,
फालसा और फरफररेवरी याद आती है।
माटी की गन्ध लौट आती है...
वैसे तो व्यंजन बहुत हैं,
मन को मनोरंजन बहुत हैं;
पर यार हम अपने को क्या कहें
भूजा और भेली का सोंधापन
यादों के सारे दरीचे खोल जाती है।
माटी की गन्ध लौट आती है...
वैसे तो अब मैं पढ़ाता हूँ,
पढ़े हुए पाठ दोहराता हूँ,
पर मुझको जिन्होंने था पढ़ाया,
उनकी छपकी की मार याद आती है,
बाबू साहब की दहाड़ याद आती है,
मौली साहब की पुकार याद आती है।
माटी की गन्ध लौट आती है।
लड़कपन-उमंग लौट आती है।।
-विजय
beete hue dino ki sirf yaaden hi rah jaati hain laut ke kabhi vaapas nahi aate.bahut achche man ke bhaavon ko ukerti kavita.bahut achchi.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है सर! बचपन की याद ताज़ी करने के लिए आभार...वो मौली साहब, बाबूसाहब...
जवाब देंहटाएंविजय सर की कविता में, सोंधी सोंधी महक
जवाब देंहटाएंगाँव, बेरी, अमराइ भी, पढ़ा, मन गया लहक.
सादर...
bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना .
जवाब देंहटाएंhttp://www.parikalpnaa.com/2011/07/blog-post_31.html
जवाब देंहटाएंhttp://www.parikalpnaa.com/2011/08/blog-post_10.html
bhaut hi sundar....
जवाब देंहटाएंवाह!!! अतिउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंgarmi ki chuttiyon mein beete nanihal ke dino ki yaad taza kar di aapne,,,bahut acchi kriti,,badhayee aaur sadar pranam ke sath
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