शनिवार, 16 जुलाई 2011

मन व्यथित है

मन व्यथित है, उर विह्वल है,
हृदय पर है बोझ भारी,
शौर्य क्षत सम्पाति सा है,
वेदना से ख़ुशी हारी।

काल-रथ आरूढ़ होकर
चल रहे सब मूर्ख, ज्ञानी,
क्षण-क्षण बदलते विश्व में
सब कल्पनाओं की कहानी।
ना अमिट है, ना अमर है
कर्म की कोई सुगाथा,
वंचनाओं से भ्रमित सब
गा रहे निज शौर्य गाथा।

संसार पारावार में तृण-पर्ण
से हम बह रहे हैं,
कोटिशः आवृत हुई है
वह कहानी कह रहे हैं
और हम समझे यही हैं
यह कहानी है हमारी।
मन व्यथित है, उर विह्वल है,
हृदय पर है बोझ भारी।।
                                          -‘विजय’

18 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग और गाफिल का आभार जो
    ऐसी उत्कृष्ट रचनाओं का मनन
    और गायन सुख प्राप्त हो रहा है ||
    श्रीमान जी को बहुत बहुत बधाई ,
    इस प्रभावी कृति के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर, कथ्य और तथ्य दोनों ही स्पष्ट. आभार...

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut sunder shabdon main likhi anoothi rachanaa.badhaai aapko.




    please visit my blog.thanks.

    जवाब देंहटाएं
  4. शुद्ध परिमार्जित भाषा में लिखी एक सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति

    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति......लाजवाब रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. व्यथित मन का बहुत सुन्दर चित्रण किया है।

    जवाब देंहटाएं
  8. काल-रथ आरूढ़ होकर
    चल रहे सब मूर्ख, ज्ञानी,
    क्षण-क्षण बदलते विश्व में
    सब कल्पनाओं की कहानी

    बहुत अच्छी...

    जवाब देंहटाएं
  9. bahut hi acchi rachna..purani kavay parampara ki nirbahan karti hui..shandar shado se pallavit hui sarthak kavita..pranam sir

    जवाब देंहटाएं
  10. आज के हालात को देखते हुए शब्दों के अलंकृत रूप मे मन की व्यथा का वर्णन…मन व्यथित है, उर विह्वल है,
    हृदय पर है बोझ भारी।।………सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं

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