रविवार, 11 सितंबर 2011

जीवन-सार


जीवन गतिशाली रहे, मन आनन्द हिलोर।
तन भी लय पर साथ दे, ईश दिखें चहुँ ओर।।


जो भी अपने पास है, वही लगे पर्याप्त।
हर हालत सन्तोष हो, रहे अनुग्रह व्याप्त।।


सुख-दुःख दोनों का वरण, मन में हो समभाव।
हर रस का आनन्द है, सबका अलग प्रभाव।।


ईर्ष्या से मन मुक्त हो, पर सुख में आह्लाद।
हो निन्दा से मन विरत, स्व-चिन्तन में स्वाद।।


हर क्षण उसका ध्यान हो, अर्पित हो हर कर्म।
सब में वो ही व्याप्त है, सबकी सेवा धर्म।।


जिसको जो अभिनय मिला, करे उसे मन लाय।
लक्ष्य हो जीवन मुक्ति का, उसका यही उपाय।।
                                                                          -विजय

9 टिप्‍पणियां:

  1. जिसको जो अभिनय मिला, करे उसे मन लाय।
    लक्ष्य हो जीवन मुक्ति का, उसका यही उपाय।।

    सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. सच ||
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई ||

    जवाब देंहटाएं
  3. सुख-दुःख दोनों का वरण, मन में हो समभाव।
    हर रस का आनन्द है, सबका अलग प्रभाव।।
    prabhawshali

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ..बहुत ही अच्‍छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं

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