बुधवार, 30 नवंबर 2011

हर पहचान दोस्ती नहीं होती


हर पहचान दोस्ती नहीं होती।
उनके मिलने से ख़ुशी नहीं होती।।


मिलते हैं तो बातें होती हैं
पर पहले सी दिल्लगी नहीं होती।


प्याज की तरह चेहरे पर तमाम पर्ते हैं,
ऐसे लोगों की मुझसे बन्दगी नहीं होती।


अच्छाई की कद्र ग़र होती,
दुनिया में इतनी भद्दगी नहीं होती।


पढ़ाने वाले अग़र बाशऊर होते,
पढ़ने वालों में ये बेहूदगी नहीं होती।


हर चीज़ अग़र बाज़ार में बिकती होती,
तो कुछ भी बेशकीमती नहीं होती।


रिश्तों को उनका सम्मान मिलता,
तो सती जा के सती नहीं होती।।
                                                                -विजय

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार ||

    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  2. हर चीज़ अग़र बाज़ार में बिकती होती,
    तो कुछ भी बेशकीमती नहीं होती।

    वाह ...बहुत बढि़या।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्याज की तरह चेहरे पर तमाम पर्ते हैं,
    ऐसे लोगों की मुझसे बन्दगी नहीं होती।

    ...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

    जवाब देंहटाएं
  4. रिश्तों को उनका सम्मान मिलता,
    तो सती जा के सती नहीं होती।।

    लाजबाब ..

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह खूबसूरत ग़ज़ल आनंद आ गया पढ़ कर !

    आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  6. हर एक शेर में जीवन की सच्चाई इंगित है ..
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना.

    जवाब देंहटाएं

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