जीवन गतिशाली रहे, मन आनन्द हिलोर।
तन भी लय पर साथ दे, ईश दिखें चहुँ ओर।।
जो भी अपने पास है, वही लगे पर्याप्त।
हर हालत सन्तोष हो, रहे अनुग्रह व्याप्त।।
सुख-दुःख दोनों का वरण, मन में हो समभाव।
हर रस का आनन्द है, सबका अलग प्रभाव।।
ईर्ष्या से मन मुक्त हो, पर सुख में आह्लाद।
हो निन्दा से मन विरत, स्व-चिन्तन में स्वाद।।
हर क्षण उसका ध्यान हो, अर्पित हो हर कर्म।
सब में वो ही व्याप्त है, सबकी सेवा धर्म।।
जिसको जो अभिनय मिला, करे उसे मन लाय।
लक्ष्य हो जीवन मुक्ति का, उसका यही उपाय।।
-विजय
bahut sundar rachna.
जवाब देंहटाएंbahut behtreen rachna.laajabaab.
जवाब देंहटाएंजिसको जो अभिनय मिला, करे उसे मन लाय।
जवाब देंहटाएंलक्ष्य हो जीवन मुक्ति का, उसका यही उपाय।।
सुन्दर अभिव्यक्ति
सच ||
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
सुख-दुःख दोनों का वरण, मन में हो समभाव।
जवाब देंहटाएंहर रस का आनन्द है, सबका अलग प्रभाव।।
prabhawshali
वाह ..बहुत ही अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंSundar jeevan saar
जवाब देंहटाएंआप सभी रस्प्रेमियो को मेरा सदर धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंखुबसुरत रचना।
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