रविवार, 30 मार्च 2014

माँ

यादों में तू है बसी सुन्दर और समर्थ।
प्रतिक्षण मेरे पास है क्यों रोऊँ मै व्यर्थ।।

               अनसुलझे जो प्रश्न हैं मैं सुलझाऊँ मौन,
               सूक्ष्म रूप में प्रेरणा देता मुझको कौन?

योगी थी तुम कर्म की अब कर्मों से मुक्त।
मै तेरा ही अंश हूँ रहू कर्म संयुक्त।।

               जो आया सो जायगा सुना सैकड़ों बार ।
               घूम घामकर लौट आ दिल की यही पुकार।।

किसको मै अम्मा कहूँ किससे दिल दूँ खोल ।
बहुत खले तेरी कमी प्रेम सिक्त वह बोल।।

                 यदि सच्चे हैं शास्त्र तो तू है शुद्ध स्वरूप,
                 जब बंधन से मुक्त तू क्यों न धरे निज रूप?

‘गया कभी आता नहीं’ इत समझैं सब कोय ।
पर दिल का मैं क्या करूँ प्रतिक्षण व्याकुल होय ।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,आभार।

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  2. योगी थी तुम कर्म की अब कर्मों से मुक्त।
    मै तेरा ही अंश हूँ रहू कर्म संयुक्त।।
    सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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