जो बातों के धनी नहीं,
उनसे मेरी बनी नहीं।
रूखा है पर सच्चा है,
उससे मेरी ठनी नहीं।
मीठी बोली किस मतलब की,
जो यथार्थ से सनी नहीं।
पानी की बूंदें भी चमकें
वो हीरे की कनी नहीं।
जिनको देना ही ना आया,
वो तो कतई धनी नहीं।
ग़र पड़ोस में भूखा कोई,
तो दीवाली मनी नहीं।।
डॉ. प्रभाकर मिश्र जी को सादर-
-‘विजय’
वाह क्या बात है! और समर्पण भी जोरदार...बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएं'जिनको देना ही ना आया,
जवाब देंहटाएंवो तो कतई धनी नहीं'
'ग़र पड़ोस में भूखा कोई,
तो दीवाली मनी नहीं'
बहुत सुन्दर सर! सबक लेनी चाहिए इन लाइनों से...बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई
अति उत्तम शानदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसरल से शब्दों में जैसे जादू किया हो.
भाव दिल को छूते हैं.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर दर्शन दीजियेगा.
बढ़िया रचना है सर,
जवाब देंहटाएंसादर..
लाजवाब सम्प्रेषण. कथ्य तो पुराने है लेकिन तेवार एकदम नए जो कथ्य को एकदम से नवीन और अत्यंत प्रभावशाली बना देते हैं. एक-एक शब्द एक सूत्र है, जीवन में उतारने योग्य है.
जवाब देंहटाएंमीठी बोली किस मतलब की,
जवाब देंहटाएंजो यथार्थ से सनी नहीं।
पानी की बूंदें भी चमकें
वो हीरे की कनी नहीं।
सशक्त रचना .. सही दिशा बताती ..प्रभावशाली प्रस्तुति
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
बहुत ही सुंदर रचना सच और केवल सच है इसमे
जवाब देंहटाएंजिनको देना ही ना आया,
जवाब देंहटाएंवो तो कतई धनी नहीं।
ग़र पड़ोस में भूखा कोई,
तो दीवाली मनी नहीं।।
..bahut badiya sadenshparak rachna prastuti ke liye aabhar!