रविवार, 25 सितंबर 2011

क्यों भाई! क्या गये हार?

भाग्य, प्रारब्ध, व्रत, त्योहार
क्यों भाई! क्या गये हार?

ज्योतिषी, नज़ूमी, पादरी, पाधा,
ये सब कर्मशील जीवन के बाधा।

ग्रह, नक्षत्र, साइत विचार,
डरे हुए मानुष का मनोविकार।

जीवन सतत प्रवाह है, साधना है,
सतत कर्म ही आराधना है।

नाम सम्मान, पैसा, समर्थन,
नाग के पहरे में गड़ा हुआ धन।

पाओगे नहीं! डस लेगा,
फ़कीर को कोई क्या देगा।

फ़कीरी अपनाओ, पा जावो निर्वाण,
नहीं तो बहुत मुश्किल से निकलेंगे प्राण।।
                                                                 -विजय

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रस्तुति पर
    बहुत-बहुत बधाई ||

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  2. जीवन सतत प्रवाह है, साधना है,
    सतत कर्म ही आराधना है। "कर्म प्रधान विश्व रचि राखा" सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक नवीन चिंतन, नयी दृष्टि अवाम दर्शन. स्वागत योग्य बातें जिनपर विचार होना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत धन्यवाद आप सबको और खास कर ज पी तिवारी जी को जिन्हीने केवल टिप्पड़ी के लिए टिप्पड़ी नहीं किया है

    जवाब देंहटाएं
  5. भाग्य, प्रारब्ध, व्रत, त्योहार
    क्यों भाई! क्या गये हार?

    ग्रह, नक्षत्र, साइत विचार,
    डरे हुए मानुष का मनोविकार।

    ....बहुत अच्छा लगा पढ़कर। वाकई डरे हुए मनुष्यों का ही अनर्गल प्रलाप है यह। साहस का संचार होता है इसे पढ़कर। यही सच्चा मंत्र है।

    जवाब देंहटाएं

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