ग़र निकल आयी ज़रा सी चीख तो क्या हो गया?
एहसास को कितना दबाऊँ दर्द आख़िर दर्द है।
हर हाल में हंसते रहे हर मौज़ में बहते रहे,
ऐसे मौज़ी फ़क्कड़ों का आज चेहरा ज़र्द है।।
आग से ही खेलने की एक लत जिसको लगी,
तलवे तो उनके गरम हैं पर हथेली सर्द है।
साफ़-सुथरे ढंग से करता जो घर की परवरिश,
आज के हालात में समझो कि असली मर्द है।।
देख करके भूख बीमारी और लाचारगी,
आँख जिसकी नम नहीं है वह बड़ा बेदर्द है।
ओढ़ करके सर से पा तक रेशमी मंहगे लिबास,
जिसका पानी मर गया पूरी तरह बेपर्द है।।
मत निहारो रास्ता उनका जो आगे कर गये,
सब चुनावी दाँव हैं कोई नहीं हमदर्द है।
गाँव के मेहनतकशों को देखकर हंसते ‘विजय’
सबका चूल्हा जो जलाये उसका चूल्हा सर्द है।।
-विजय
एहसास को कितना दबाऊँ दर्द आख़िर दर्द है।
हर हाल में हंसते रहे हर मौज़ में बहते रहे,
ऐसे मौज़ी फ़क्कड़ों का आज चेहरा ज़र्द है।।
आग से ही खेलने की एक लत जिसको लगी,
तलवे तो उनके गरम हैं पर हथेली सर्द है।
साफ़-सुथरे ढंग से करता जो घर की परवरिश,
आज के हालात में समझो कि असली मर्द है।।
देख करके भूख बीमारी और लाचारगी,
आँख जिसकी नम नहीं है वह बड़ा बेदर्द है।
ओढ़ करके सर से पा तक रेशमी मंहगे लिबास,
जिसका पानी मर गया पूरी तरह बेपर्द है।।
मत निहारो रास्ता उनका जो आगे कर गये,
सब चुनावी दाँव हैं कोई नहीं हमदर्द है।
गाँव के मेहनतकशों को देखकर हंसते ‘विजय’
सबका चूल्हा जो जलाये उसका चूल्हा सर्द है।।
-विजय
बेहद उम्दा और शानदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आकके इस सुन्दर प्रविष्ट की चर्चा कल सोमवारीय चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.in/ पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंआग से ही खेलने की एक लत जिसको लगी,
जवाब देंहटाएंतलवे तो उनके गरम हैं पर हथेली सर्द है।
शानदार अभिव्यक्ति. महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ
दर्द मेरे पास भी
जवाब देंहटाएंथा दौड़ कर आया.
देख इतने जख्म यहाँ,
वह खुद शरमाया.
टिकने की कोई जगह
न अब तक उसने पायी.
पोर-पोर में अन्दर मेरे
वह बेदर्द समाई.
गाँव के मेहनतकशों को देखकर हंसते ‘विजय’
जवाब देंहटाएंसबका चूल्हा जो जलाये उसका चूल्हा सर्द है।।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ.