सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

दोहे-

‘भाई-भाई सकल जग’ कहता पाक़ कलाम।
दहशतगर्दी कृत्य से, शरमिन्दा इस्लाम।।

फ़िक्रे ख़ुदा में रम रहे, सकल मास रमजान।
उसमें ही बम फोड़कर किया घिनौना काम।।

झांको थोड़ा पलटकर, माज़ी में रहमान।
वंशवेलि मिल जायगी, हममें एक समान।।

दिल को जीते प्यार से, हज़रत का पैगाम।
निर्मम हत्या तुम करो, लेकर उनका नाम।।

वहशी-क़ातिल क्या कहूँ? लानत तेरे नाम।
ख़ूनी रिश्ते को किया, शर्मसार बदनाम।।


गिने-चुने सिरफिरे हैं, सकल क़ौम बदनाम।
नये ख़ून में भर दिया, किसने ज़हर तमाम।।

                                                                       -विजय

1 टिप्पणी:

  1. बेहतरीन दोहे लिखे है आपने!
    शायद कुछ संदेश मिल पाए उन दहशतगर्द को ...!
    आभार!

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