मन में कुछ और है मुँह में है कुछ और।
या रब वे कहें कुछ और मैं सुनू कुछ और।।
पीना तो गुनाह बेलज़्जत है अगर साक़ी,
नाज़ो अदा से न पूछे कुछ और कुछ और।
ज़िन्दगी में हसरतें जितनी थी पूरी कर ली,
पर ज़ईफ़ी में भी मन कहता है कुछ और कुछ और।
क़र्ज़ तो जो भी था हम पर अदा कर डाला,
फ़र्ज़ फिर भी करे इसरार कुछ और कुछ और।
आये जो पीरो-पैग़म्बर सब सुपुर्देख़ाक़ हुए,
इस ख़ाक़ से सदा आती है अभी आएंगे कुछ और कुछ और।
जेब में दम हो तो बीबी कहे कुछ और कुछ और,
पेट में ख़म हो तो माँ कहे कुछ और कुछ और।।
-विजय
या रब वे कहें कुछ और मैं सुनू कुछ और।।
पीना तो गुनाह बेलज़्जत है अगर साक़ी,
नाज़ो अदा से न पूछे कुछ और कुछ और।
ज़िन्दगी में हसरतें जितनी थी पूरी कर ली,
पर ज़ईफ़ी में भी मन कहता है कुछ और कुछ और।
क़र्ज़ तो जो भी था हम पर अदा कर डाला,
फ़र्ज़ फिर भी करे इसरार कुछ और कुछ और।
आये जो पीरो-पैग़म्बर सब सुपुर्देख़ाक़ हुए,
इस ख़ाक़ से सदा आती है अभी आएंगे कुछ और कुछ और।
जेब में दम हो तो बीबी कहे कुछ और कुछ और,
पेट में ख़म हो तो माँ कहे कुछ और कुछ और।।
-विजय
sir aaj to aapka ek aur behtarin andaj dekhne ko mila bahut hee acchi ghazal..sadar badhayee aaur amantran ke sath
जवाब देंहटाएंमन को प्रभावित करती सुंदर गजल ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
सर बहुत कुछा सिखाती है आपकी यह रचना
जवाब देंहटाएं... ....pranam