व्यक्ति का हर कर्म मूलाकार में,
क्या वासनाओं का स्फुरण है?
पल-पल छीजते जुड़ते
अहंकारों के गगन में
क्या ग़लत है? क्या सही है?
न्याय क्या? अन्याय क्या?
सम्मान क्या? अपमान क्या?
इन विचारों का पनपना
गुंझनों के सुलझने का
क्या पहला चरण है?
जब विरोधों की चुभन
कुछ रास सी आने लगे,
जब पुराने अनुभवों की तिलमिलाहट
मन्द पड़कर मन को बहलाने लगे,
क्या समझ लूँ ओज घटता जा रहा है?
या निरन्तर बढ़ रहे वय का वरण है?
जब आघात पर प्रतिघात
करने का न मन हो
विद्रूप बोझिल अट्टहासों की प्रतिध्वनि,
मन्द सी मधुस्मित सुमन हो,
चिलचिलाती धूप भी
जब छाँव सी भाने लगे,
दर्द की हर टीस से
जब हृदय गुनगुनाने लगे,
क्या समझ लूँ धार अब
तलवार की मुरदा रही है?
या हृदय में अहिंसा-भाव
का यह अवतरण है?
भावनाओं की नुकीली
चोटियां शान्त होकर
जब पठारों सी लहराने लगें,
प्रतिक्रियाओं की लपकती तीव्रता
उन्माद से बचकर निकल जाने लगे,
कुछ पुरानी दो टूक बेबाकियों से
स्वयं ही जब शरम आने लगे,
पूर्ण अवसर प्राप्त होने के अनन्तर
वार करने से जब मन कतराने लगे,
क्या समझ लूँ डोर
प्रत्यंचा के शिथिल हैं?
या अनाच्छादित हृदय में
सत्य का यह अनावरण है?
व्यक्ति का हर कर्म मूलाकार में
क्या वासनाओं का स्फुरण है?
-'विजय'
क्या वासनाओं का स्फुरण है?
पल-पल छीजते जुड़ते
अहंकारों के गगन में
क्या ग़लत है? क्या सही है?
न्याय क्या? अन्याय क्या?
सम्मान क्या? अपमान क्या?
इन विचारों का पनपना
गुंझनों के सुलझने का
क्या पहला चरण है?
जब विरोधों की चुभन
कुछ रास सी आने लगे,
जब पुराने अनुभवों की तिलमिलाहट
मन्द पड़कर मन को बहलाने लगे,
क्या समझ लूँ ओज घटता जा रहा है?
या निरन्तर बढ़ रहे वय का वरण है?
जब आघात पर प्रतिघात
करने का न मन हो
विद्रूप बोझिल अट्टहासों की प्रतिध्वनि,
मन्द सी मधुस्मित सुमन हो,
चिलचिलाती धूप भी
जब छाँव सी भाने लगे,
दर्द की हर टीस से
जब हृदय गुनगुनाने लगे,
क्या समझ लूँ धार अब
तलवार की मुरदा रही है?
या हृदय में अहिंसा-भाव
का यह अवतरण है?
भावनाओं की नुकीली
चोटियां शान्त होकर
जब पठारों सी लहराने लगें,
प्रतिक्रियाओं की लपकती तीव्रता
उन्माद से बचकर निकल जाने लगे,
कुछ पुरानी दो टूक बेबाकियों से
स्वयं ही जब शरम आने लगे,
पूर्ण अवसर प्राप्त होने के अनन्तर
वार करने से जब मन कतराने लगे,
क्या समझ लूँ डोर
प्रत्यंचा के शिथिल हैं?
या अनाच्छादित हृदय में
सत्य का यह अनावरण है?
व्यक्ति का हर कर्म मूलाकार में
क्या वासनाओं का स्फुरण है?
-'विजय'
बहुत सुन्दर रचना...अपनी इस प्रथम रचना के प्रकाशन पर बधाई स्वीकार करें महोदय!
जवाब देंहटाएंmere dwara padi gayi 2nd rachna aur bhi prasanshaneeye hai guru g
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर रचना मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी आपसे अनुरोध है कि आप वहाँ आयें और अपनी अनमोल राय से अवगत कराएं
जवाब देंहटाएं-ग़ाफ़िल
भयंकर सच्चाई से रूबरू कराया है प्राचार्य जी ने ||
जवाब देंहटाएंकिशोर ---तरुण -----अधेड़ और फिर
चौकी भी तोड़ने की कुब्बत न रखने वाला बुजुर्ग ||
चार अवस्थाओं का प्रत्यक्षीकरण एक अचर्चित परन्तु सर्वाधिक लोकप्रिय यानी विषय का आधार ||
आभार यह रचना पढवाने के लिए गाफिल जी का ||
विजय जी को बधाई ||
सीधे वाक्य नहीं बन पड़े || समझिये भाव --
शब्द नहीं ||
आपसे मिलन हो इसके लिए जरुरी है की एक साहित्य सम्मलेन का आयोजन हो आपके संस्थान में ||
जवाब देंहटाएंहम तन-मन -धन से आपके सहयोग के लिए तत्पर रहेंगे |
भावनाओं की नुकीली
जवाब देंहटाएंचोटियां शान्त होकर
जब पठारों सी लहराने लगें,
प्रतिक्रियाओं की लपकती तीव्रता
उन्माद से बचकर निकल जाने लगे,
बहुत सार्थक प्रश्न करती ओज पूर्ण रचना
ye to gahan manan ka bishya hai..shandar prastuti..sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएंक्या समझ लूँ डोर
जवाब देंहटाएंप्रत्यंचा के शिथिल हैं?
या अनाच्छादित हृदय में
सत्य का यह अनावरण है?
व्यक्ति का हर कर्म मूलाकार में
क्या वासनाओं का स्फुरण है?
bahut achchhi rachna . Abhar avm shubhkamnayen