रविवार, 8 जनवरी 2012

ख़यालात कुछ ऐसे

ज़िन्दगी शर्म से हो रही है पानी-पानी,
आज के हालात कुछ ऐसे हैं।


हराम हो-हलाल हो, पा लेना है,
लोगों के ख़यालात कुछ ऐसे हैं।।


ता’उम्र खोजते रहे जवाब पर पा न सके,
ख़ुदी और ख़ुदाई के सवालात कुछ ऐसे हैं।


यादों के सफ़े पे वो आये और हम खिल उठ्ठे,
ज़िन्दगी के मुलाक़ात कुछ ऐसे हैं।


कुछ भी ग़लत होता है तो, निकलते हैं उनके हाथ,
आज के नेताओं के हाथ कुछ ऐसे हैं।


ख़ून सने होने के बावज़ूद कमल कहलाते,
कहलाते ही रहेंगे इमकानात कुछ ऐसे हैं।


सारी मुख़ालिफ फिज़ाओं के बावज़ूद ‘विजय’
फ़र्ज़ में करें गरल आत्मसात कुछ ऐसे हैं।
                                                                     -विजय

17 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  2. सारी मुख़ालिफ फिज़ाओं के बावज़ूद ‘विजय’
    फ़र्ज़ में करें गरल आत्मसात कुछ ऐसे हैं।


    वाह! शानदार प्रस्तुति.

    नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,डॉ.साहिब.

    जवाब देंहटाएं
  3. हराम हो-हलाल हो, पा लेना है,
    लोगों के ख़यालात कुछ ऐसे हैं।।

    वाह!बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही .. कमेंट्स के स्पैम में देखिये

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

    जवाब देंहटाएं
  6. लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना

    आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

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