शनिवार, 30 जुलाई 2011

बहुत छिछोरा है मन मेरा

तन को तो बहला लूँ लेकिन
मन को मैं कैसे बहलाऊँ
बहुत छिछोरा है मन मेरा
उसको मैं कैसे समझाऊँ?

जीवन की लम्बी यात्रा में
कितनी बार फिसल कर सम्भला,
तन को मैंने साध लिया पर
मन तो क़दम-क़दम पर मचला,
जीवन के इस सांध्य गगन के
मन-तरंग किसको दिखलाऊँ?
                             बहुत छिछोरा है मन मेरा...

बाबा-दादा सम्बोधन में
कितना प्यार भरा है लेकिन
इसके पीछे से ध्वनि आती
ऐ बुड्ढे! तू अपना दिन गिन
गालों की झुर्री को कबतक
लगा क्रीम रगड़ूं, सहलाऊँ?
                             बहुत छिछोरा है मन मेरा...

सागर के तट पर बैठा पर
प्यास-तड़प से आकुल हूँ मैं,
धूप सेंकती रूप-राशि के
चितवन से व्याकुल हूँ मैं,
जल तो तृप्त करेगा तन को,
मन की तृप्ति कहाँ से पाऊँ?
                            बहुत छिछोरा है मन मेरा...

योग, ध्यान सब करके देखा,
पढ़ा बहुत सन्तों का लेखा,
प्रवचन-पोथी मेट न पाये
मन की व्याकुलता की रेखा,
ध्यान लगाता हूँ ईश्वर में
कहां लगे कैसे बतलाऊँ?
                             बहुत छिछोरा है मन मेरा...
                                                                    -‘विजय’

16 टिप्‍पणियां:

  1. 'ध्यान लगाता हूँ ईश्वर में
    कहाँ लगे कैसे बतलाऊं'
    .................क्या कहना शुक्ला जी
    ...........बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गीत , बार-बार गुनगुनाने का मन करता है

    जवाब देंहटाएं
  2. योग, ध्यान सब करके देखा,
    पढ़ा बहुत सन्तों का लेखा,
    प्रवचन-पोथी मेट न पाये
    मन की व्याकुलता की रेखा... yahi mul satya hai , mann kee bhatkan ko baandhna itna aasaan nahi

    जवाब देंहटाएं
  3. मन है ही ऐसा ! बहुत सुंदर और भावमाई रचना ।

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  4. गालों की झुर्री को कब तक लगा क्रीम ,रगडू सहलाऊँ ,
    बहुत छिछोरा है मन मेरा ,उसको मैं कैसे समझाऊँ .बहुत बिंदास ,बे -लाग ,दो टूक अभिव्यक्ति .लिखा आपने सह भोक्ता हम भी बनें इस सफर के .उम्र हमारी भी ६४ साला है .सेवा निवृत्त बतौर प्राचार्य ,राजकीय स्नाकोत्तर विद्यालय ,बादली (झज्झर ),हरियाणा .लेकिन हम इस बात के कायल हैं -ए मेन इज एज ओल्ड एज ही थिंक्स ,ए वोमेन इज एज ओल्ड एज शी लुक्स .अभी तो मैं जवान हूँ .

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  5. योग, ध्यान सब करके देखा,
    पढ़ा बहुत सन्तों का लेखा,
    प्रवचन-पोथी मेट न पाये
    मन की व्याकुलता की रेखा,
    ध्यान लगाता हूँ ईश्वर में
    कहां लगे कैसे बतलाऊँ?
    बहुत छिछोरा है मन मेरा...
    ..Man hi to jisko bas mein kar diya to sabkuch paa liya samjho!!
    Man ke gati ki badiya prastuti..

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  6. आज रांची प्रवास के मध्य में हूँ |
    एक मित्र के घर से आपका आभार कर रहा हूँ ||

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  7. बिना लाग लपेट के सादगी और सत्यापुरित अभिव्यक्ति के लिए आपका अभिनन्दन....
    आपके शब्द गुदगुदाते हुए भी मानस अंतस की अंतहीन तृष्णाओं के अंधियारे को प्रकाशित करती हैं....
    सादर....

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  8. सागर के तट पर बैठा पर
    प्यास-तड़प से आकुल हूँ मैं,
    धूप सेंकती रूप-राशि के
    चितवन से व्याकुल हूँ मैं,
    जल तो तृप्त करेगा तन को,
    मन की तृप्ति कहाँ से पाऊँ?
    aaj to sirf ise padhne ka man ho raha hai comment karne ka nahi..sadar pranam ke sath

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  9. कितना सुन्दर लेखन....छोटे से मुंह से आपकी प्रशंसा भी कैसे करूँ??...आशीर्वाद चाहूँगा आपका ...
    http://aarambhan.blogspot.com

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  10. जल तो तृप्त करेगा तन को,
    मन की तृप्ति कहाँ से पाऊँ?
    बहुत छिछोरा है मन मेरा...
    वाह! बहुत खूब!
    सब समझ जाए पर को कौन समझाए .. सच में बड़ा छिछोरा है!

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  11. bahut achcha geet likha hai aapne dil ke gahare bhaav bhi hain jeevan ki sachchai bhi hai.sbabdon ka achcha chayan bhi hai.pahli baar apke blog par aai hoon.aap bhi mere blog par sadar aamantrit hain.anusaran kar rahi hoon taki update se avgat ho sakun.

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  12. बहुत गहरी और ईमानदार अभिव्यक्ति। 

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