मंगलवार, 8 नवंबर 2011

एक खुला पत्र नक्सलवादियों के नाम


हे समाज के सच्चे पर अतिबुद्धिवादियों!
जिन आदर्शों के लिए तुम अपना 
और भोले आदिवासियों का खून 
बहाकर पैदा कर रहे हो ज़ुनून,
निर्मम हत्याओं के कलंक का टीका
लगाना तुमने जिनसे सीखा!
कभी उनके आचरण और परिणाम
पर तुमने दिया ध्यान?


वर्ग-संघर्ष, ज़ुल्मी ज़मींदार, बुर्जुआ
जैसे शब्दों से तुम्हें बींधकर
तुम्हारे स्वतन्त्र चिन्तन-शैली का
जिसने किया अपहरण,
वे क्या नहीं कर रहे हैं तुम्हारा शोषण?


तुम उस आग की तरह हो
जिसमें गर्मी बहुत है,
पर प्रकाश नहीं है
और तुम्हारा आदर्श है
प्रकाशित करना न कि जलाना!


दुनिया के किसी देश में, किसी काल में
आर्थिक और सामाजिक बराबरी रही हो
तो मित्र मुझे भी बताओ!
मैं भी तुम्हारे साथ अपने को
होम करने के लिए तत्पर हूँ!


पर भोले-भाले ग्रामीणों को
अपरिपक्व, उधार के दर्शन में
मत तपावो!
मैं जानता हूँ मित्र! तुम सच्चे हो,
पर भटके हो
और यह दर्प कि ‘तुम हटके हो’
तुम्हें बलिदानी बना रहा है।


शोषण का प्रतिकार प्रतिशोषण नहीं,
हिंसा का प्रतिकार प्रतिहिंसा नहीं,
अव्यवस्थाओं का प्रतिकार अव्यवस्था नहीं है मित्र!
एक नयी सामाजिक क्रान्ति का उपक्रम अन्ततः
पुनः एक नये शोषक-वर्ग को जन्म नहीं देगा?


जिसको अपना आदर्श मानकर
एक और अन्धविश्वास के तहत
तुम अपने को होम कर रहे हो,
निष्पक्ष बुद्धि से उनका आकलन करो
तो देखोगे-एक नये परिधान में पुनः
एक शोषक तुम्हारा शोषण कर रहा है।


तुम्हारी भावनाएं अत्यन्त उदात्त हैं,
तुम्हारी पर-पीड़ा-अनुभूति अत्यन्त तीव्र है,
यही अतिरेक तुम्हें भावनात्मक
शोषण का पात्र बनाता है।
परिपक्व होने दो अपनी इन अनुभूतियों को
फिर तुम हिंसा के नहीं, प्रेम के
अजस्र स्रोत बनोगे! बुद्ध बनोगे
और बुद्ध बनने के लिए अपने
संवेगों को सम्यक् करना होता है।।


आपके लिए ही एक ग़ज़ल-


इक मुकम्मिल दर्द का एहसास हो।
फिर आदमी कुछ ज़िन्दगी के पास हो।।


गहन-वन की कन्दराओं में गया,
खोजता था सन्त जो कुछ ख़ास हो।


उम्र भर मैं राह ही देखा करूँ,
उनके आने की ज़रा भी आस हो।


दोस्ती में फ़र्क पड़ सकता नहीं,
दोस्त ग़र पूरी तरह बिन्दास हो।


डूबे गले तक आज दूषित पंक में,
या रब! इन्हें भी सत्य का आभास हो।


वो क्या जियेगा ज़िन्दगी पूरी तरह जो
चालो-चलन, रस्मो-रसम का दास हो।।
                                                                    -विजय

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।

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  2. तुम उस आग की तरह हो
    जिसमें गर्मी बहुत है,
    पर प्रकाश नहीं है
    सच्ची बात!
    ग़ज़ल भी सन्देश देने में सफल है आपके खुले पत्र की तरह!

    जवाब देंहटाएं

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