क्या हुआ जो नज़र कमज़ोर हो चली
चाँद के दाग तो न दिखाई देंगे।
जो पास हैं उनपे तो तवज्जो होगा,
जब दूर वाले साफ़ न दिखाई देंगे।
तेज़ नज़रों के मीन-मेख से क्या पाया यारों,
जो साथ-साथ चलते थे उन्हें गंवाया यारों,
कमज़ोर नज़र अच्छी कम ही देखेगी
सबके नहीं बस अपने सनम देखेगी।
हर अक्स पर झीना पर्दा सा लगता है,
हर शख़्स कोहरे में लिपटा सा लगता है,
हर कली हौले-हौले मुस्काये,
तितलियों का उड़ना मौसिक़ी सा लगता है।
फिर नज़रों को लेकर परीशाँ क्यों हों
उम्र के साथ घटने की मसलहत समझो,
अब वक्त बाहर नहीं अन्दर झांकने का है
औरों की नहीं अपनी कमियां आंकने का है।
-विजय
अपनी कमियां आँक ली जाएँ तो हारी परेशानियां ही हल हो जाएँ ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर अक्स पर झीना पर्दा सा लगता है,
जवाब देंहटाएंहर शख़्स कोहरे में लिपटा सा लगता है………………यही है अबूझ पहेली ………सुन्दर भावाव्यक्ति।
तेज़ नज़रों के मीन-मेख से क्या पाया यारों,
जवाब देंहटाएंजो साथ-साथ चलते थे उन्हें गंवाया यारों,
कमज़ोर नज़र अच्छी कम ही देखेगी
सबके नहीं बस अपने सनम देखेगी।
gahan prastuti
वाह!!! बहुत बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविता ||
सुन्दर प्रस्तुति ||
प्रवाहमयी रचना के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंbhaut hi sundar rachna...
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