दुःख का रिश्ता जनम-जनम से
सुख तो आता जाता है,
सुख से मानव कभी न सीखे,
दुःख ही उसे सिखाता है।।
सुख में जीवन उस सरिता सा
जिसमें कोई वेग नहीं,
लहरें तो उठती ही हैं तब,
जब होता अवरोध कहीं।।
अवरोधों से लड़ूँ और जीतूँ
जब भाव प्रबल होता,
दुर्दमनीय तरंगों सा फिर
जीवन और सबल होता।।
गिरकर ही चलना सीखा है
अब तक के हर बालक ने,
प्रथम श्वास के साथ ही रोदन
नियम दिया अनुपालक ने।।
मानव-शिशु ही केवल रोता
ऐसा क्यों? क्या सोचा है?
चिन्तन करो गहन तो देखो
उत्तर बहुत अनोखा है।।
हर प्राणी का कर्म मात्र
अनुवांशिक है, स्वविवेक नहीं,
मानव मात्र कर्म का स्वामी
करे ग़लत या करे सही।।
फिर तो वह ही भुगतेगा
अपने कर्मो का परिणाम,
यही सोच कर रोता है क्या?
कैसे हो शुचिता से काम।।
-विजय
बहुत सुन्दर रचना ...इंसान दुखों से ही सीखता है ..सही कहा .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंसही है ..इंसान दुःख में ही कुछ सीख पाता है
जवाब देंहटाएंमानव-शिशु ही केवल रोता
जवाब देंहटाएंऐसा क्यों? क्या सोचा है?
चिन्तन करो गहन तो देखो
उत्तर बहुत अनोखा है।।...wakai...
jindagi ke baare me gahan chintan...jeewan ka anokha darshan...wakai agar dukh na ho to sukh ki anubhuti karna mushkil hai..sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएंsukh ak kalpana hai. sach to ye hai jeevan ki utpatti hi dukhon ke bhog ke liye hai fir kyo mrig marichika ki tarah sukh ko talashen ? dukh ko aatmsat kren shayad sukh ka tirashkar hi hmen tanav se mukt kr de . sir aapki rachna behad achhi lgi apki kalpnayon (rachnaon) se meri soch ko bl milta hai aur ve jeevant ho uthati hain.apko kotishah dhanyvad . ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंaap सभी महानभाओ को कोटिशः धन्यवाद !
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