हर पहचान दोस्ती नहीं होती।
उनके मिलने से ख़ुशी नहीं होती।।
मिलते हैं तो बातें होती हैं
पर पहले सी दिल्लगी नहीं होती।
प्याज की तरह चेहरे पर तमाम पर्ते हैं,
ऐसे लोगों की मुझसे बन्दगी नहीं होती।
अच्छाई की कद्र ग़र होती,
दुनिया में इतनी भद्दगी नहीं होती।
पढ़ाने वाले अग़र बाशऊर होते,
पढ़ने वालों में ये बेहूदगी नहीं होती।
हर चीज़ अग़र बाज़ार में बिकती होती,
तो कुछ भी बेशकीमती नहीं होती।
रिश्तों को उनका सम्मान मिलता,
तो सती जा के सती नहीं होती।।
-विजय
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
हर चीज़ अग़र बाज़ार में बिकती होती,
जवाब देंहटाएंतो कुछ भी बेशकीमती नहीं होती।
वाह ...बहुत बढि़या।
प्याज की तरह चेहरे पर तमाम पर्ते हैं,
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों की मुझसे बन्दगी नहीं होती।
...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
रिश्तों को उनका सम्मान मिलता,
जवाब देंहटाएंतो सती जा के सती नहीं होती।।
लाजबाब ..
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
बहुत खूब विजय जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
वाह खूबसूरत ग़ज़ल आनंद आ गया पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंआभार !!
हर एक शेर में जीवन की सच्चाई इंगित है ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी रचना.
समस्त रचनाधर्मियो को मेरा प्रणाम !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल....
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