मंगलवार, 1 नवंबर 2011

फूलों की घाटी

पुष्पघाटी की एक अलसायी सुबह
पुष्पगंगा के सलिल पर पौड़कर
मन तिर रहा था कुहरे की परतों पर
अचानक छिछलते हुए पैठ गया अन्दर।


ब्रह्मकमल की भीनी ख़ुश्बू
निःशब्द अतीत की गहराइयों में
खोलने लगा अवगुण्ठन इस
अजर अमर आत्मा के।


फिर देखा निर्निमेष आँखों से
द्रौपदी का वह मूक उपालम्भ
गन्धर्वों का वह प्रचण्ड शौर्य
जिससे हार मैं खड़ा हूँ
आज दर्प दलित भीम
ला न पाया पुष्पोपहार
और गया हार!


कितना अवसाद कितनी कुंठा
पर फिर भी आत्मसम्मान
इस अकेले का राजशक्ति से
हारने का अभिमान
पर हाय! यह आत्मतोष भी
न भाग्य में बदा था!


अर्जुन के भ्राता को छोड़ दिया ससम्मान
और मैं अवसाद के पुष्प लिए
द्रौपदी के सम्मुख खड़ा था,
आत्मघात भी न कर पाया यह कापुरुष
जबकि मेरे हाथ में गदा था।
                                                                  -विजय

7 टिप्‍पणियां:

  1. फूलों की घाटी से भीम की कुंठा ... अद्भुत सोच

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  2. फिर देखा निर्निमेष आँखों से
    द्रौपदी का वह मूक उपालम्भ
    गन्धर्वों का वह प्रचण्ड शौर्य
    जिससे हार मैं खड़ा हूँ
    आज दर्प दलित भीम
    ला न पाया पुष्पोपहार
    और गया हार!
    bahut badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  3. रश्मि जी और संगीता जी ,बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. "सर " उपालम्भ का अर्थ क्या होता हैं?

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  5. यश जी उपालंभ का अर्थ है तिरस्कार पूर्वक शिकायत या हकारत की नज़र से देखना

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