शनिवार, 5 नवंबर 2011

एक अन्धी लड़की की प्रार्थना-


हे परम पिता!
स्वीकारो मेरा अभिवादन!
जो कह रही हूँ, मेरी उत्सुकता है
मत समझना मेरा रुदन!


दिन और रात क्या अलग से दिखते हैं?
कैसा लगता है जब लोग हँसते हैं?
हँसी केवल सुनने की चीज़ है?
या दिखायी भी पड़ती है?
चिड़ियों की चहचहाहट मैंने सुनी है
ये क्या हैं? कैसी होती हैं?


मैंने हाथी और दस अन्धों की कहानी सुनी,
ख़ूब हँसी और ख़ूब रोयी!
मैं भी तो नहीं जानती कि
हाथी कैसा होता है?
फूल, इन्द्रधनुष, मेरी माँ की शक्ल
ये सब कैसे हैं?


मेरी माँ एक सुखद स्वप्न देखती है,
कोई विशाल-हृदय व्यक्ति मरणोपरान्त
अपनी आँख मुझे देगा
और मैं सब देखूँगी!!


हे परम पिता! क्या यह सम्भव है?
क्या ऐसे लोग भी हैं?
मेरी एक ही अभिलाषा है
अपनी माँ की शक्ल देख सकूँ!
मुझे मालूम है तुम भी वैसे ही होगे
हे परम पिता! सुन रहे हो न?
इस अँधेरे संसार में तुम कहीं हो न?
(गारो से भावानुवाद)
                                                              -विजय

9 टिप्‍पणियां:

  1. आह ! बेहद मार्मिक और संवेदनशील अभिव्यक्ति एक दृष्टिहीन के भावो को बहुत ही खूबसूरती से संजोया है।

    जवाब देंहटाएं
  2. दिन और रात क्या अलग से दिखते हैं?
    कैसा लगता है जब लोग हँसते हैं?
    हँसी केवल सुनने की चीज़ है?
    या दिखायी भी पड़ती है?
    चिड़ियों की चहचहाहट मैंने सुनी है
    ये क्या हैं? कैसी होती हैं?
    dil ko chhute ehsaas

    जवाब देंहटाएं
  3. हे परम पिता! क्या यह सम्भव है?
    क्या ऐसे लोग भी हैं?
    मेरी एक ही अभिलाषा है
    अपनी माँ की शक्ल देख सकूँ!
    मुझे मालूम है तुम भी वैसे ही होगे
    हे परम पिता! सुन रहे हो न?
    इस अँधेरे संसार में तुम कहीं हो न?

    bhavpoorn evam behad marmik prastuti.

    जवाब देंहटाएं
  4. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 07-11-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर भावानुवाद....
    सादर बधाई....

    जवाब देंहटाएं
  6. गहरी संवेदना लिए रचना ....बेहतरीन भावानुवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी एक ही अभिलाषा है
    अपनी माँ की शक्ल देख सकूँ!
    मुझे मालूम है तुम भी वैसे ही होगे
    हे परम पिता! सुन रहे हो न?

    बेहद संवेदनशील और मार्मिक. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  8. अगर is kavita से वाकई आपका हृदय पसीजा हो तो नेत्रदान के लिए संकल्प ले .

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  9. बहुत सही कहा आपने और नेत्रदान तो बहुत हि पुन्य का कार्य है सबों को संकल्प लेना चाहिए| मनुष्य मनुष्य के काम आ सके इससे बड़ा और महँ कार्य क्या हो सकता है|

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