ज़ोर से जो बज रहा थोथा चना है।
मौन का अब शोर से ही सामना है।।
हौले-हौले आह भर लो चीखो नहीं,
हिन्द में जनतन्त्र है चिल्लाना मना है।
देखते हो गगनचुम्बी भवन को,
यह शानो-शौक़त हमारे पसीने से बना है।
हर वो हाथ जिसको आज कमल कहते हैं,
रक्तरंजित है गुनाहों से सना है।
लड़कियों की शादियों में जो झुका था,
आज लड़के के लगन में कैसा तना है।
नक़ल करके पास होके साहिबी पायी,
कहीं पर गिड़गिड़ाएं कहीं पर कटखना है।
जश्न चारों ओर है शोर है,
पर न जाने आज क्यों मन अनमना है।
-विजय
मौन का अब शोर से ही सामना है।।
हौले-हौले आह भर लो चीखो नहीं,
हिन्द में जनतन्त्र है चिल्लाना मना है।
देखते हो गगनचुम्बी भवन को,
यह शानो-शौक़त हमारे पसीने से बना है।
हर वो हाथ जिसको आज कमल कहते हैं,
रक्तरंजित है गुनाहों से सना है।
लड़कियों की शादियों में जो झुका था,
आज लड़के के लगन में कैसा तना है।
नक़ल करके पास होके साहिबी पायी,
कहीं पर गिड़गिड़ाएं कहीं पर कटखना है।
जश्न चारों ओर है शोर है,
पर न जाने आज क्यों मन अनमना है।
-विजय
हौले-हौले आह भर लो चीखो नहीं,
जवाब देंहटाएंहिन्द में जनतन्त्र है चिल्लाना मना है।
लड़कियों की शादियों में जो झुका था,
आज लड़के के लगन में कैसा तना है।
वह शुक्ल जी , सामाजिक कुरीतियों और देश की गम्भीर समस्याओं को समेटे हुए एक सार्थक रचना पर हार्दिक बधाई
behtreeen aur sarthak rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल राय की अपेक्षा करती है हमारी यह पोस्ट-
‘‘क्या अन्ना हजारे द्वारा संचालित भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की प्रक्रिया और कार्यपद्धति लोकतन्त्र के लिए एक चुनौती है?’’
लड़कियों की शादियों में जो झुका था,
जवाब देंहटाएंआज लड़के के लगन में कैसा तना है।
वाह ..बहुत खूब